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The Story of Jesus Christ : Birth, Life, Death, Resurrection
Here you will find the new law, the birth and protection of Christ.
  You will gain every knowledge about Jesus Christ.  Who was Jesus Christ?
  Where did he belong to.

Matthew's Gospel (literally, "according to Matthew"; Greek, kata matthian or kata matheon) is a synonymous gospel in the New Testament, one of the four canonical gospels. It tells about the life and ministry of Jesus of Nazareth. It describes his lineage, his miraculous birth and childhood, his baptism and temptation, his healing and exhortation, and finally his cross and resurrection. The resurrected Jesus commissioned his apostles "to go and make disciples of all nations".




The Christian community traditionally empowers writers for Matthew the Evangelist, one of the twelve disciples of Jesus. Augustine of Hippo wrote the first gospel (see Synchronous Problem), and it appears in most Bibles as the first gospel. Secular scholarship generally agrees that it was written later, and writers in the ancient world as Matthew. According to the commonly accepted two-source hypothesis, the author used the fictional cue document of Mark's Gospel as one source and the other as possibly writing in Antioch, Sarca





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किन्तु उसे विश्वास के साथ और सन्देह किये बिना प्रार्थना चाहिए; क्योंकि जो सन्देह करता है, वह समुद्र की लहरों के सदृश है, जो हवा से इधर-उधर उछाली जाती हैं।
(सन्त याकूब का पत्र 1 : 6)


जो व्यक्ति हमारे प्रभु एवं मुक्तिदाता ईसा मसीह का ज्ञान प्राप्त कर संसार के दूषण से बच गये, वे यदि फिर उसी में फँस कर उसके अधीन हो जाते हैं तो उनकी यह पिछली दशा पहली से भी बुरी होती है।
(सन्त पेत्रुस का दूसरा पत्र 2 : 20)


जो प्रजाति प्रभु पर श्रद्धा रखती है, वही सम्मान के योग्य है। जो प्रजाति प्रभु की आज्ञाओं का उल्लंघन करती है, वह सम्मान से वंचित रह जाती है।
(प्रवक्ता-ग्रन्थ 10 : 23)





पापी अपना मार्ग छोड़ दे और दुष्ट अपने बुरे विचार त्याग दे। वह प्रभु के पास लौट आये और वह उस पर दया करेगा; क्योंकि हमारा ईश्वर दयासागर है।
)इसायाह का ग्रन्थ 55 : 7)


देखो! सन्देशवाहक पर्वतों पर आ रहा है, वह शांति घोषित करने आ रहा है। यूदा! अपने पर्व मनाओ और अपनी मन्नतें पूरी करो। कुकर्मी फिर कभी तुझ पर आक्रमण नहीं करेगा- उसका सर्वनाश हो गया है।
(नहूम का ग्रन्थ 2 : 1)



वैसे ही पृथ्वीतल पर से धर्मियों का लोप हो गया है, न मनुष्य जाति में कोई सच्चा भक्त रह गया। सब लोग खून करने के लिए घात लगाये रहते हैं, या अपने भाई को गिराने के लिए जाल बिछाये रहते हैं।
(मीकाह का ग्रन्थ 7 : 2)





पेत्रुस के साथ आये हुए यहूदी विश्वासी यह देख कर चकित रह गये कि गैर-यहूदियों को भी पवित्र आत्मा का वरदान मिला है;
(प्रेरित-चरित 10 : 45)



                               'उस दिन दाऊद के घराने और येरुसालेम के नागरिकों के पाप और अशुद्धता धोने के लिए एक नया स्रोत फूट निकलेगा।''
(ज़कारिया का ग्रन्थ 13 : 1)                                


विश्वास के अभाव में कोई ईश्वर का कृपापात्र नहीं बन सकता। जो ईश्वर के निकट पहुँचना चाहता है, उसे विश्वास करना है कि ईश्वर है और वह उन लोगों का कल्याण करता है, जो उसकी खोज में लगे रहते हैं।
(इब्रानियों के नाम पत्र 11 : 6)





आपके मुख से कोई अशलील बात नहीं, बल्कि ऐसे शब्द निकलें, जो अवसर के अनुरूप दूसरों के निर्माण तथा कल्याण में सहायक हों।

(एफ़ेसियों के नाम  पत्र 4 : 29)



क्योंकि आप जानते हैं कि प्रत्येक मनुष्य, चाहे वह दास हो या स्वतन्त्र, जो भी भलाई करेगा, उसका पुरस्कार वह प्रभु से प्राप्त करेगा।
(एफ़ेसियों के नाम पत्र 6 : 8)



''इसके बाद मैं सब शरीरधारियों पर अपना आत्मा उतारूँगा। तुम्हारे पुत्र और पुत्रियाँ भविष्यवाणी करेंगे, तुम्हारे बडे-बूढे स्वप्न दखेंगे और तुम तुम्हारे नवयुवकों को दिव्य दर्शन होंगे।
(योएल का ग्रन्थ 3 : 1)






उन से मुझे प्रेरित बनने का वरदान मिला है, जिससे मैं उनके नाम पर ग़ैर-यहूदियों में प्रचार करूँ और वे लोग विश्वास की अधीनता स्वीकार करें।

(रोमियों के नाम पत्र 1 : 5)



जो मुझे प्यार करते हैं और मेरी आज्ञाओं का पालन करते हैं, मैं हजार पीढ़ियों तक उन पर दया करता हँू।
(विधि-विवरण ग्रन्थ 5 : 10)



और यदि तुम निर्दोष और निष्कपट हो, तो वह तुम्हारी रक्षा करेगा और तुम्हें न्याय दिलायेगा।
(अय्यूब का ग्रन्थ 8 : 6)




जो उसे खोजने के लिए बड़े सबेरे उठते हैं, उन्हें परिश्रम नहीं करना पड़ेगा। वे उसे अपने द्वार के सामने बैठा हुआ पायेंगे।
(प्रज्ञा-ग्रन्थ 6 : 14)


आप लोग ईश्वर की पवित्र एवं परमप्रिय चुनी हुई प्रजा है। इसलिए आप लोगों को अनुकम्पा, सहानुभूति, विनम्रता, कोमलता और सहनशीलता धारण करनी चाहिए।
(कलोसियों के नाम पत्र 3 : 12)


ज्योति जिसे आलोकित करती है, वह स्वयं ज्योति बन जाता है। इसलिए कहा गया है -नींद से जागो, मृतकों में से जी उठो और मसीह तुम को आलोकित कर देंगे।
(एफ़ेसियों के नाम पत्र 5 : 14)




जो बहुत अधिक बोलता, वह पाप से नहीं बचता; किन्तु जो अपनी जिह्वा पर नियन्त्रण रखता, वह बुद्धिमान् है।
(सूक्ति ग्रन्थ 10 : 19)


प्रभु अपनी प्रतिज्ञाएं पूरी करने में विलम्ब नहीं करता, जैसा कि कुुछ लोग समझते हैं। किन्तु वह आप लोगों के प्रति सहनशील है और यह चाहता है कि किसी का सर्वनाश नहीं हो, बल्कि सब-के-सब पश्चाताप करें।
(सन्त पेत्रुस का दूसरा पत्र 3 : 9)



शान्ति का ईश्वर आप लोगों को पूर्ण रूप से पवित्र करे। आप लोगों का मन, आत्मा तथा शरीर हमारे प्रभु ईसा मसीह के दिन निर्दोष पाये जायें।
(थेसलनीकियों का पहला पत्र 5 : 23)




हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि हमारा पुराना स्वभाव उन्हीं के साथ क्रूस पर चढ़ाया जा चुका हैं, जिससे पाप का शरीर मर जाये और हम फिर पाप के दास न बने;
(रोमियों के नाम पत्र 6 : 6)


मैं तुम्हें अपना आत्मा प्रदान करूँगा और तुम में जीवन आ जायेगा। मैं तुम्हें तुम्हारी अपनी धरती पर बसाऊँगा और तुम लोग जान जाओगे कि मैं, प्रभु, ने यह कहा और पूरा भी किया'।''
(एज़ेकिएल का ग्रन्थ 37 : 14)


 तुम अपने प्रभु ईष्वर की सेवा करोगे और वह तुम्हारे अन्न-जल को आषीर्वाद देगा और मैं तुम से बीमारियाँ दूर रखूँगा।
(निर्गमन ग्रन्थ 23 : 25)


किन्तु तुम पर, जो मुझ पर श्रद्धा रखते हो, धर्म के सूर्य का उदय होगा और उसकी किरणें तुम्हें स्वास्थ्य प्रदान करेंगी। तब तुम उसी प्रकार उछलने लगोगे, जैसे बछड़े बाड़े से निकल कर उछलने-कूदने लगते हैं।
(मलआकी का ग्रन्थ 3 : 20)







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हमें जो राज्य मिला है, वह नहीं हिलाया जा सकता, इसलिए हम ईश्वर को धन्यवाद देते रहें और उसकी इच्छानुसार भक्ति एवं श्रद्धा के साथ उसकी सेवा करते रहें;
(इब्रानियों के नाम पत्र 12 : 28)


तुम अपने प्रभु ईष्वर की सेवा करोगे और वह तुम्हारे अन्न-जल को आषीर्वाद देगा और मैं तुम से बीमारियाँ दूर रखूँगा।
(निर्गमन ग्रन्थ 23 : 25)



जो सारे हृदय से प्रभु की सेवा करता है, उसकी सुनवाई होती है और उसकी पुकार मेघों को चीर कर ईष्वर तक पहुँचती हैं।
(प्रवक्ता-ग्रन्थ 35 : 20)


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सुसमाचार सुनाओ, समय-असमय लोगों से आग्रह करते रहो। बड़े धैर्य से तथा शिक्षा देने के उद्देश्य से लोगों को समझाओ, डाँटो और ढारस बँधाओ;
(तिमथी के नाम दूसरा पत्र 4 : 2)


मुझे अपने सत्य के मार्ग पर ले चल, मुझे शिक्षा देने की कृपा कर; क्योंकि तू ही वह ईश्वर है, जो मुक्ति प्रदान करता है। मैं दिन भर तेरी प्रतीक्षा करता हूँ।
(स्तोत्र ग्रन्थ 25 :5)



तुम्हारे हाथ जो भी काम करें, उसे पूरी लगन के साथ करो; क्योंकि अधोलोक में, जहाँ तुम जाने वाले हो, वहाँ न तो काम है, न विचार, न ज्ञान और न प्रज्ञा।
(उपदेशक ग्रन्थ 9 : 10)




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पापी अपना मार्ग छोड़ दे और दुष्ट अपने बुरे विचार त्याग दे। वह प्रभु के पास लौट आये और वह उस पर दया करेगा; क्योंकि हमारा ईश्वर दयासागर है।
(इसायाह का ग्रन्थ 55 : 7)


किन्तु तुम पर, जो मुझ पर श्रद्धा रखते हो, धर्म के सूर्य का उदय होगा और उसकी किरणें तुम्हें स्वास्थ्य प्रदान करेंगी। तब तुम उसी प्रकार उछलने लगोगे, जैसे बछड़े बाड़े से निकल कर उछलने-कूदने लगते हैं।
(मलआकी का ग्रन्थ 3 : 20)



क्योंकि उन्हीं के द्वारा सब कुछ की सृष्टि हुई है। सब कुछ - चाहे वह स्वर्ग में हो या पृथ्वी पर, चाहे दृश्य हो या अदृश्य, और स्वर्गदूतों की श्रेणियां भी - सब कुछ उनके द्वारा और उनके लिए सृष्ट किया गया है।
(कलोसियों के नाम पत्र 1 : 16)




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जो दृढ़तापूर्वक प्रभु पर श्रद्धा नहीं रखता, उसका घर शीघ्र उजड़ जायेगा।
(प्रवक्ता-ग्रन्थ 27 : 3)


हम जानते हैं कि ईश्वर का पुत्र आया है और उसने हमें सच्चे ईश्वर को पहचानने का विवेक दिया है। हम सच्चे ईश्वर में निवास करते हैं; क्योंकि हम उसके पुत्र ईसा मसीह में निवास करते हैं। यही सच्चा ईश्वर और अनन्त जीवन है ! 
(सन्त योहन का पहला पत्र 5 : 20)



जो तुझ पर भरोसा रखते हैं, उन्हें पुरस्कार दे और अपने नबियों की वाणी सत्य प्रमाणित कर। अपने सेवकों की प्रार्थना सुन।
(प्रवक्ता-ग्रन्थ 36 : 18)




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इसलिए आप लोग अपने शरीर में इन बातों का दमन करें, जो पृथ्वी की हैं, अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, कामुकता, विषयवासना और लोभ का, जो मूर्तिपूजा के सदृश है।
(कलोसियों के नाम पत्र 3 : 5)



तुम्हारे हाथ जो भी काम करें, उसे पूरी लगन के साथ करो; क्योंकि अधोलोक में, जहाँ तुम जाने वाले हो, वहाँ न तो काम है, न विचार, न ज्ञान और न प्रज्ञा।
(उपदेशक ग्रन्थ 9 : 10)



यदि तूने प्रज्ञा का वरदान नहीं दिया होता और अपने पवित्र आत्मा को नहीं भेजा होता, तो तेरी इच्छा कौन जान पाता?
(प्रज्ञा-ग्रन्थ 9 : 17)




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ज्योति जिसे आलोकित करती है, वह स्वयं ज्योति बन जाता है। इसलिए कहा गया है -नींद से जागो, मृतकों में से जी उठो और मसीह तुम को आलोकित कर देंगे।
(एफ़ेसियों के नाम पत्र 5 : 14)



जो अपने पाप छिपाता, वह उन्नति नहीं करेगा; जो उन्हें प्रकट कर छोड़ देता, उस पर दया की जायेगी।
(सूक्ति ग्रन्थ 28 : 13)



प्रभु की ओर दृष्टि लगाओ, आनन्दित हो, तुम फिर कभी निराश नहीं होगे।
(स्तोत्र ग्रन्थ 34 : 5)





जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा यह है कि जिन्हें उसने मुझे सौंपा है, मैं उन में से एक का भी सर्वनाश न होने दूँ, बल्कि उन सब को अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दूँ।
(सन्त योहन 6 : 39)



हम प्रेम का मर्म इस से पहचान गये कि ईसा ने हमारे लिए अपना जीवन अर्पित किया और हमें भी अपने भाइयों के लिए अपना जीवन अर्पित करना चाहिए।
(सन्त योहन का पहला पत्र 3 : 16)



आप इस संसार के अनुकूल न बनें, बल्कि बस कुछ नयी दृष्टि से देखें और अपना स्वभाव बदल लें। इस प्रकार आप जान जायेंगे कि ईश्वर क्या चाहता है और उसकी दृष्टि में क्या भला, सुग्राह्य तथा सर्वोत्तम है।
(रोमियों के नाम पत्र 12 : 2)





कुछ लोग अपने कुकर्मों के कारण बीमार पड़ गये थे। वे अपने पापों के कारण कष्ट झेल रहे थे।
( ग्रन्थ स्तोत्र 107 : 17)


मुझे अपने सत्य के मार्ग पर ले चल, मुझे शिक्षा देने की कृपा कर; क्योंकि तू ही वह ईश्वर है, जो मुक्ति प्रदान करता है। मैं दिन भर तेरी प्रतीक्षा करता हूँ।
(स्तोत्र ग्रन्थ 25 : 5)


यदि ईश्वर का आत्मा सचमुच आप लोगों में निवास करता है, तो आप शरीर की वासनाओं से नहीं, बल्कि आत्मा से संचालित हैं। जिस मनुष्य में मसीह का आत्मा निवास नहीं करता, वह मसीह का नहीं।
(रोमियों के नाम पत्र 8 : 9)






इतना ही नहीं, मैं प्रभु ईसा मसीह को जानना सर्वश्रेष्ठ लाभ मानता हूँ और इस ज्ञान की तुलना में हर वस्तु को हानि ही मानता हूँ। उन्हीं के लिए मैंने सब कुछ छोड़ दिया है और उसे कूड़ा समझता हूँ,
(फ़िलिप्पियों के नाम पत्र 3 : 8)



तुमने पहले ईश्वर से दूर हो जाने की बात सोची थी। अब दस गुने उत्साह से उसके पास लौटने की चेष्टा करो;
(बारूक का ग्रन्थ 4 : 28)



क्या आप लोग यह नहीं जानते कि आपका शरीर पवित्र आत्मा का मन्दिर है? वह आप में निवास करता है और आप को ईश्वर से प्राप्त हुआ है। आपका अपने पर अधिकार नहीं है! 
(कुरिन्थियों के नाम पहला पत्र 6 : 19)



ईसा ने उस से कहा, ''मार्ग सत्य और जीवन मैं हूँ। मुझ से हो कर गये बिना कोई पिता के पास नहीं आ सकता।''
(सन्त योहन 14 : 6)


आप नहीं जानते कि कल आपका क्या हाल होगा। आपका जीवन एक कुहरा मात्र है- वह एक क्षण दिखाई दे कर लुप्त हो जाता है।
(सन्त याकूब का पत्र 4 : 14)


''प्रभु के सभी कार्य उत्तम हैं और उसके सभी आदेष अपने समय पर पूर्ण होते हैं''। यह मत पूछो, ''यह क्या है? इस से क्या लाभ?'' क्योंकि अपने समय पर सब कुछ का रहस्य प्रकट हो जायेगा।
(प्रवक्ता-ग्रन्थ 39 : 21)




''प्रभु के सभी कार्य उत्तम हैं और उसके सभी आदेष अपने समय पर पूर्ण होते हैं''। यह मत पूछो, ''यह क्या है? इस से क्या लाभ?'' क्योंकि अपने समय पर सब कुछ का रहस्य प्रकट हो जायेगा।
(प्रवक्ता-ग्रन्थ 39 : 21)


जो शिक्षा तुम लोगों ने प्रारम्भ से सुनी, वह तुम में बनी रहे। जो शिक्षा तुम लोगों ने प्रारम्भ से सुनी, यदि वह तुम में बनी रहेगी, तो तुम भी पुत्र तथा पिता में बने रहोगे।
( सन्त योहन का पहला पत्र 2 :  24 )


यदि मैं तेरी आज्ञाओं का ध्यान करता रहूँगा, तो मुझे कभी हताश नहीं होना पड़ेगा।
(स्तोत्र ग्रन्थ 119 : 6 )




ईश्वर ने, जो सम्पूर्ण अनुग्रह का स्रोत है, आप लोगों को मसीह द्वारा अपनी शाश्वत महिमा का भागी बनने के लिए बुलाया। वह, आपके थोड़े ही समय तक दुःख भोगने के बाद, आप को परिपूर्ण, सुस्थिर, समर्थ तथा सुदृढ़ बनायेगा।
(सन्त पेत्रुस का पहला पत्र 5 : 10)


योशुआ ने लोगो से कहा, ''अपने को पवित्र बनाये रखो क्योंकि कल प्रभु तुम्हारी आँखों के सामने चमत्कार करेगा''।
(योशुआ का ग्रन्थ 3 : 5)



जीवन और मृत्यु, दोनों मनुष्य की जिह्वा के अधीन है। उसका सदुपयोग करो और तुम्हें उसका फल प्राप्त होगा।
(सूक्ति ग्रन्थ 18 : 21)



क्योंकि प्रभु को धार्मिकता प्रिय है। वह अपने भक्तों को कभी नहीं त्यागता। वह सदा उनकी रक्षा करता है, किन्तु दुष्टों का वंश नहीं बना रहेगा।
(स्तोत्र ग्रन्थ 37 : 28)

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